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क्या लिखूं

param aanand
param aanand
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समझ नहीं आता मैं क्या लिखूं ,
जो कभी ख़त्म होता नहीं दीखता
उस भ्रस्टाचार पर मैं क्या लिखूं !
जो नेता झूठे वादे करता नहीं थकता ,
उस नेता पर मैं क्या लिखूं !
जिस जनता का खून नहीं खोलता,
उस बेचारी जनता पर क्या लिखूं !
काम ,क्रोध, लोभ ,मोह और अह्नाकार
न मिटने वाली माया पर मैं क्या लिखूं !
जो इश्वर मूरत में बसा है
उस मूरत पर मैं क्या लिखूं !
हत्या देखकर भी जो अन्जान हो
ऐसे सहमे गवाह पर मैं क्या लिखूं !
बिना रिश्वत जिसके घर चूल्हा न जले
ऐसे रिश्वत खोर पर मैं क्या लिखूं !
जो दुल्हन पिता के पैसों से
पति की कार चलवाए उस दुल्हन …..लिखूं !
जो अपनी ही संतान को कोख में मिटा दे
ऐसे हत्यारे पिता पर मैं क्या लिखूं !
जो पैदा करने वालों को ही न पाल सके
नाकारा ओलाद के बारे मैं क्या लिखूं !
मैं मर्यादा पुरषोत्तम राम तो नहीं
फिर मैं अपने बारे मैं क्या लिखूं ! !

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