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राजनीती की पोर्तीबीलिटी

param aanand
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आज टेक्नोलाजी आने से , प्रतिस्पर्धा के कारण आप बिना नंबर बदले अपनी मोबाइल कंपनी बदल सकते हैं , और आप अपनी बीमा कंपनी भी बदल सकते है …… इन सभी को सुविधा कहते हैं क्यों की अगर कोई व्यक्ति किसी कंपनी से नाखुश है तो वह जिस कंपनी की सुविधा लेना चाहे ले सकता है इससे कंही न कंही देश की जनता को फायदा हो सकता है !
लेकिन ये फैशन राजनीती में भी चल रहा है बिना अपना पद बदले कोई भी पार्टी में चले जाओ … एक नेता अपने जीवन में कई पार्टीयों में घूमता है बल्कि दूसरी पार्टी में और बड़ा पद मिलने की सम्भावना है शायद इसी को देखकर मोबाइल और बीमा कंपनियों को ये आइडिया आया है अगर आप पार्टी से नाखुश हैं तो दूसरी पार्टी में चले जाओ साथ में अपने समर्थक भी ले जा सकते हैं …. समर्थक ज्यादा हैं तो आप अपनी खुद की एक बिलकुल नई पार्टी भी बना सकते हैं अगर चल गए तो मजा ही मजा , ……
वर्ना …. घबराने की जरुरत नहीं कुछ महीनो बाद वही पुरानी कंपनी सॉरी वही पुरानी पार्टी आपको बुला लेगी हो सकता है आप कोई मंत्री या मुख्यमंत्री बन जाएँ !
फिल्म गली गली चोर है का एक संवाद याद आ रहा है ” सात हजार नगद देकर हवलदार बना हूँ किसलिए भारत माता की सेवा के लिए …!
हम नेताओं को गलत समझते हैं वे तो भारत माता की सेवा करना चाहते हैं इसलिए तो इतनी मेहनत से इतनी रिस्क से कमाया हुआ अपना करोड़ों रुपया चुनाव प्रचार में लगा देते हैं ! जरा सोंचें आम आदमी की क्या रिस्क है रोज कमाना रोज खाना कुछ हजारों का हिसाब रखना ये क्या खाक रिस्क हुई … रिस्क तो बेचारे नेता उठाते हैं …हजारों करोड़ रूपये जनता से कमाते हैं सारे रूपए विदेश पहुंचाते हैं ….यहाँ तक की अपने नोकरों के भी खाते खुलवाते है…. बेचारे इतनी रिस्क उठाते हैं फिर भी बेईमान कहलाते हैं !
अरे हम हिन्दुस्तानी भाई बहनों को धर्मों का पाठ पढ़ाते हैं नेता ही तो हिन्दू मुस्लमान बनाते हैं बेचारे फिर भी बेईमान कहलाते हैं !
”यह लेख सिर्फ भ्रष्ट नेताओं के बारे में है साफ छवि वाले क्रप्या ध्यान ना दे ”

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