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फोबिया (डर) से डरने की जरुरत नहीं

param aanand
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कोई भी कार्य करने के लिए हमारा फोकस { ध्यान} उस काम में होना जरुरी है, अगर हमारा ध्यान कंही और है तो हम उस काम को सही तरीके से नहीं कर पाएंगे !
वज्ञानिकों के अनुसार हमारे दिमाग में याद के लिए २० अरब तंतु होते हैं जिन्हें गिनने
के लिए हमें ३ साल लग सकते हैं….. हमारा मश्तिष्क किसी भी घटना के मुख्य अंश ही याद रखता है, इन्ही मुख्य अंशों में कंही डर के अंश वो घटना इस तरह अपनी पकड़ बना लेती है जीवन भर यह डर हमारा पीछा नहीं छोड़ता….. तब हम किसी साइक्रेटिस्ट की मदद लेते हैं! पर इसका एक और सरल तरीका है…. वर्तमान में रहना !
मानव जाती वर्तमान में रहना नहीं जानती हम या तो भूतकाल की बातों में उलझे रहते
हैं या फिर भविष्य की चिंता में डूबे रहते हैं यही डिप्रेशन आगे जाकर फोबिया बन
जाता है आपने कभी गोर किया है जब कोई व्यक्ति अकेले बैठे बैठे हंसने लगता है और
हम पूछते हैं क्या बात है आज तो बहुत हंसी आ रही है….. या फिर उस व्यक्ति
के बारे में सोचें जो कुछ सोचते सोचते उदास हो जाता है यंहा तक की रोने भी लगता
है ! यह घटना तब होती है जब हम कंही होते हैं और हमारा मन भूत या भविष्य
की किसी घटना से जोड़कर एक हो जाता है… तब कहते हैं सबकुछ मेरी आँखों
के सामने है पर वास्तव में होता नहीं है ! यह मन की गति है
हमारा फोकस अगर वर्तमान में है तो मन हमारे वश में है …… वर्ना हम मन के वश
में हैं

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